संगठन और राजनीति में प्रवेश: क्या यह पाप धोने का नया साधन बन गया है?
वर्तमान समय में यह एक सामान्य दृश्य बनता जा रहा है कि समाज में जिन व्यक्तियों पर गंभीर आरोप लगे हों, जिनका अतीत विवादों और अपराधों से भरा हो, वे अचानक किसी सामाजिक संगठन या राजनीतिक दल का हिस्सा बन जाते हैं। यह प्रवृत्ति सोचने पर मजबूर करती है – क्या संगठन और राजनीति अब आत्मशुद्धि का मंच बन चुके हैं, या केवल अपने पापों पर पर्दा डालने का एक नया तरीका?
राजनीति और छवि सुधार
राजनीति का क्षेत्र जनसेवा के लिए होता है, लेकिन आज यह अक्सर ‘इमेज बिल्डिंग’ का साधन बन गया है। कई व्यक्ति जो व्यापारिक अनियमितताओं, आर्थिक अपराधों या सामाजिक अन्यायों में लिप्त रहे हैं, वे जब किसी प्रतिष्ठित संगठन या दल में शामिल होते हैं, तो एक नया नैतिक आवरण पा लेते हैं।
उनका अतीत भुला दिया जाता है, और वर्तमान में उन्हें “सम्माननीय नेता” या “सामाजिक कार्यकर्ता” कहा जाने लगता है।
संगठन: सेवा या स्वार्थ?
सामाजिक या धार्मिक संगठन भी इस चलन से अछूते नहीं हैं। कुछ संगठन सेवा के नाम पर उन लोगों को भी अपनाते हैं जिनका मुख्य उद्देश्य आत्म-प्रचार, छवि सुधार या कानूनी सुरक्षा प्राप्त करना होता है।
सेवा का उद्देश्य पीछे छूट जाता है और संगठन “पापों की धुलाई केंद्र” बनकर रह जाते हैं।
समाज की भूमिका और ज़िम्मेदारी
समाज को इस प्रवृत्ति के प्रति सजग होना होगा। किसी व्यक्ति का संगठन या राजनीति में आना बुरा नहीं है, लेकिन उसके अतीत की ईमानदारी से समीक्षा जरूरी है। यदि कोई व्यक्ति वास्तव में प्रायश्चित की भावना से सेवा करना चाहता है, तो उसे पहले समाज से माफ़ी मांगनी चाहिए, अपने किए अपराधों की सज़ा भुगतनी चाहिए – न कि संगठन में शामिल होकर वैचारिक आवरण पहन लेना चाहिए।
निष्कर्ष
राजनीति और संगठन किसी के पाप धोने का मंच नहीं हैं, बल्कि समाज सेवा और राष्ट्र निर्माण के क्षेत्र हैं। यदि हम इन्हें ‘पाप प्रक्षालन केंद्र’ बना देंगे, तो न केवल इनकी पवित्रता नष्ट होगी, बल्कि समाज में सच्चे सेवकों का स्थान भी गिर जाएगा।
हमें सजग रहकर यह तय करना होगा कि संगठन और राजनीति में कौन लोग आने योग्य हैं – वो जो सेवा के लिए आते हैं या वो जो छवि सुधारने के लिए?
-राम पवार
सामाजिक कार्यकर्ता&
प्राधान संपादक :-
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